कैसा हूँ मैं

सामने तू है, औ’ तेरी याद लिए बैठा हूँ मैं
रख दे हाथ दिल पे ज़रा पूछ तो कैसा हूँ मैं

दश्त में हर गाम दिखाई देती है सूरत तेरी
सराबों में डूबा हूँ, किस क़दर प्यासा हूँ मैं

खड़ा हूँ तेरे मुक़ाबिल मैं नेज़े सम्भाले मगर
पसे-जिरह-बख़्तर बिलकुल तेरे जैसा हूँ मैं

ओहदों, तमग़ों, रिसालों से कोई खुदा होता नहीं
गर तू मुझसे नेक है, तेरे सामने झुकता हूँ मैं

झूठ के बाज़ार में सच बेचता हूँ “ओझल”
क्या ताज्जुब सबकी आँख में चुभता हूँ मैं

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