काश कभी तुझे भी बहकता हुआ देखूँ
या रात भर करवटें बदलता हुआ देखूँ
अपनी साँसों के इक लम्स की गरमी से
तेरी तेज़ साँसों को पिघलता हुआ देखूँ
अपने होंठों को तेरे होंठों पे रख दूँ मैं
और तुझे बेसाख़्ता तड़पता हुआ देखूँ
साबित कर वस्ल की आख़िरी रात है
कम-अस-कम तेरा दम निकलता हुआ देखूँ
मेरी कोई ख़्वाहिश ना रहे बाक़ी गर
तुझे चाँदनी में इक बार जलता हुआ देखूँ