जुदा हो गई होगी

मंज़िल से जुदा हो गई होगी
राह इतनी देर तक चली होगी

तू अकेला नहीं है उदास यहां
हर दिल में इक आह दबी होगी

परवाना कब का मर गया होगा
शमा रात भर बेकार जली होगी

जो राह हमारी भी देखती होगी
शहर में कोई तो वो गली होगी

ना मिला तो होगा अफ़सोस बहुत
मिला तो कौन सी खुशी होगी

जिसके आगे सर पटके दरिया
वो हमारी ही तश्ना लबी होगी

हम यहां कैद हैं अपने दफ्तर में
और गांव में शाम ढली होगी

वक़्त होगा ना किसी के वास्ते
नहीं सोचा था ऐसी नौकरी होगी

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