आ मुझे छू ले

आज फिर मैं तन्हा हूं, आ मुझे छू ले
मैं तेरा भूला लम्हा हूं, आ मुझे छू ले

भटकता रहा सदियों से इस सहरा में
इक उम्र से प्यासा हूं, आ मुझे छू ले

मेरी आंखों की नदी कब की सूख चुकी
मैं इक उजड़ा सहरा हूं, आ मुझे छू ले

यूं भूली है दुनिया, मुझको भी याद नहीं
किसका अधूरा नग्मा हूं, आ मुझे छू ले

मेरे गीतों को सुनकर खुश होते हैं सारे
मैं तेरे लिए ही गाता हूं, आ मुझे छू ले

इस घर के हर कमरे में यादें हैं तेरी
इन से भागता रहता हूं, आ मुझे छू ले

करती है मेरे सामने सजदे सारी दुनिया
मगर खुद से पसपा हूं, आ मुझे छू ले

मेरी लफ्ज़ों में शायद अब वो बात नहीं
मैं फिर भी कहता हूं, आ मुझे छू ले

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1 thought on “आ मुझे छू ले”

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