आईना ही झूठा दिखाई दे
मेरे अक्स में दूसरा दिखाई दे
पुरानी आँखों से ये जहाँ भला
रोज़ कैसे नया सा दिखाई दे
सराबों से नज़रें बचाने वाले को
हक़ीक़त-ए-सहरा दिखाई दे
ये कैसी जिद्द कि मेरा खुदा भी
मेरी तरह ही तनहा दिखाई दे
तू ही नाखुदा है मेरा और तेरी
आँखों में ही दरिया दिखाई दे
बन्द आँखों के पीछे से वो भी
शायद मुझे देखता दिखाई दे
ढूँढता फिरता है ‘ओझल’ कि
कोई तो उसके जैसा दिखाई दे