आते हैं

औरों के हिस्से में चंदा, ख़्वाब औ’ जुगनू आते हैं
लेकिन हमारी आंखों को तो बस आंसू आते हैं

मुश्किल में नहीं देते साथ, वैसे तंज़ कसते हैं
ऐसे लोगों से पूछे कोई कौन हैं, वो क्यूं आते हैं

उस गली से निकलो तो आंखें मीचे मीचे रहना
उस गली में इक परी है, जिसको जादू आते हैं

दैर-ओ-हरम के झगड़ों में उम्र यूं तमाम न कर
चल मयकदे, जिसमें सिख मुस्लिम हिंदू आते हैं

बाद तुम्हारे इस घर का हाल ना पूछो कैसा है
दिन में सांप रेंगते हैं, रातों को बिच्छू आते हैं

इस दिल पे क्या गुज़रती है कोई बतलाए कैसे
जब उस शोख के शानों पर महके गेसू आते हैं

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