ज़ुल्म खामोश नहीं सहा, अच्छा नहीं किया
हाकिम को जवाब दिया, अच्छा नहीं किया
यूँ तो सबने देखे उसके खूॅ़ से सने हाथ
तुमने उसे क़ातिल कहा, अच्छा नहीं किया
हुज़ूर इक छोटी सी बात कहनी थी हमें
आपने हमें बख्श दिया, अच्छा नहीं किया
खंजर के वास्ते हमारा सीना था मौजूद
तूने वार पीठ पे किया, अच्छा नहीं किया
माना कि बुलंदियों की थी चाह बहुत ‘ओझल’
मगर ईमान बेच दिया, अच्छा नहीं किया