किसी को वक्त ने, कहीं हालात ने अजनबी बना रखा है
कहीं खामुशी, कहीं किसी बात ने अजनबी बना रखा है
गर चाहते मिलाना, तो मिला सकते थे हमको मगर
हमें जाने क्यूं हमारे जज़्बात ने अजनबी बना रखा है
हर धड़कते पत्थर को बनाना चाहते थे दिल जो
उनको उनके इन्हीं खयालात ने अजनबी बना रखा है
कितने वादे थे हमारे बीच वस्ल के, मगर आज रात
तुम्हारे दरवाज़े पे खड़ी बारात ने अजनबी बना रखा है
मिले थे पहले पहल हम ऐसी ही बरसात की रात
आज हम दोनों को इसी बरसात ने अजनबी बना रखा है