अलविदा

नींद टूट भी गई है
आंख खुली भी नहीं है
मुझे आवाज़ दे रही हैं
कई खामोशियां।

मेरे बिस्तर के बगल में
गिलास उल्टे पड़े हैं
फर्श पर फ़ैल गई है
अधूरी ख्वाहिशें औ’
नाकामियां।

एक तज़ब्ज़ुब में
उलझा हूं, सोचता हूं
उठ जाऊं या फिर
सो जाऊं ओढ़ के
बे-ख़्वाबियां।

मै ज़माने के समंदर
में खे रहा हूं टूटी कश्ती
कोई नाखुदा नहीं
और घेरे हैं कितनी
तुग्यानियां।

सच कहूं तो अब
किसी तौर जी बहलता नहीं
मुझे रास नहीं आतीं
जहां की रंगीनियां
रानाइयां।

मैंने भी चाहा था
दुनिया को बदलना मगर
साथ मेरे थे मेरे
ख्वाब कोशिश हिम्मत हुनर
हाथ आई लेकिन मेरे सिर्फ
पस्पाइयां।

छोड़ के हूं जा रहा
मैं ये बेरहम जहां
तुम्हे कमी महसूस हो तो
याद कर लेना मेरी
बर्बादियां।

* तज़ब्ज़ुब = ऊहापोह
* तुग्यानियां = storms
* रानाइयां = सुंदरता
* पस्पाइयां = defeats

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Discover more from ओझल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading