यह सच है
दर्द सारे साझे होते हैं।
तमन्नाओं की टूटी किरचें सब पलकों में धँसती हैं
आईने तन्हाई में सबको मुँह चिढ़ाते हैं
कटु शब्दों से छलनी हरेक का सीना होता है
अश्रु नीरद हर नज़र को अनायास धुँधलाते है
किंतु ज़ख़्म एक से दीखते हों भी
तो एक ही नहीं होते हैं
हर आँगन में मेघ वृष्टि का फल
अलग ही होता है
फल की नियति का निर्धारण
बीज की शक्ति,
मिट्टी की क्षमता,
वृक्ष के अनुभव
पर होता है।
हर हृदय में शब्द बाण
अलग गहराई तक जाता है।
हर दुःख सर्वव्यापी होते हुए भी
अंततः
वैयक्तिक होता है।