अपने दिल की बर्बादी का मंज़र जवाँ देखूँ
भीड़ है मेरे ही दोस्तों की मैं जब जहाँ देखूँ
इतना डर लगता है अपनी वहशत से कि अब
दिल के आईनाखाने में तस्वीर-ए-जाना देखूँ
देखता हूँ गिरती दीवारों को अपने इर्द-गिर्द
गो तमन्ना मेरी भी है इक महल मैं बनता देखूँ
हमेशा देखी है तुम्हारी आँखों से ये दुनिया मैंने
अब जी चाहे किसी रोज़ कुछ तो नया देखूँ
किसी और के दर्द को समझूँ भी तो भला कैसे
अना का तक़ाज़ा है कुछ ना अपने सिवा देखूँ