दोबारा

ऊँगली मेरे बालों में फिराना दोबारा
मैं ज़िंदा हूँ एहसास दिलाना दोबारा

तुम्हारी ख़ुशबू मेरे दर पे दस्तक देगी
मेरे ख़त को होंठों से लगाना दोबारा

हाँ अब मेरे नहीं तुम मगर ऐसा भी क्या
कि देख के मुझे नज़रें चुराना दोबारा

सच कहता हूँ मेरी जाँ निकल जाएगी
जो तुमने कह दिया मुझे “जानाँ” दोबारा

इस बेहिस दुनिया से थक गया ‘ओझल’
आज इक बार फिर मुस्कुराना दोबारा

कोई

है ये उम्मीद कि लौटेगा कोई
मुझे ख़ुद से बचा लेगा कोई

फिर इक ख़्वाब ने करवट ली है
तो रात आँखों में काटेगा कोई

सब खड़े है बांधे हुए हाथ यूँ
उठेगा अभी, मुस्कुराएगा कोई

बादल फिर लौटेंगे बिन बरसे
सूखे खेत फिर जोतेगा कोई

दुनिया फ़तह करके आएगा और
अपने बच्चों से हारेगा कोई

मुझ को क़त्ल करेगा “ओझल”
मुझे क़ातिल ठहराएगा कोई

अनूठे दर्द

यह सच है
दर्द सारे साझे होते हैं।

तमन्नाओं की टूटी किरचें सब पलकों में धँसती हैं
आईने तन्हाई में सबको मुँह चिढ़ाते हैं
कटु शब्दों से छलनी हरेक का सीना होता है
अश्रु नीरद हर नज़र को अनायास धुँधलाते है

किंतु ज़ख़्म एक से दीखते हों भी
तो एक ही नहीं होते हैं

हर आँगन में मेघ वृष्टि का फल
अलग ही होता है
फल की नियति का निर्धारण
बीज की शक्ति,
मिट्टी की क्षमता,
वृक्ष के अनुभव
पर होता है।

हर हृदय में शब्द बाण
अलग गहराई तक जाता है।

हर दुःख सर्वव्यापी होते हुए भी
अंततः
वैयक्तिक होता है।

देख कर

ख़ुद-परस्ती का यह नया मंज़र देख कर
बहुत हैरान हूँ आज अपने अंदर देख कर

वह आँख जिसे पत्थर कहता रहा बरसों
हुई कुछ तो नम दिल-ए-बंजर देख कर

कहा करता था बिन मेरे बिखर जाएगा
अफ़सोस हुआ यूँ तुझे यकसर देख कर

कोई गर अपनी मुफ़लिसी में भी ख़ुश है
हैरान होते हैं उसे कई सिकंदर देख कर

मुझे ख़ौफ़ सिर्फ़ लानत-ए-ना-तवाँ से है
नहीं डरता तुम्हारे नेजे-निश्तर देख कर

आपके तबस्सुम ने जान डाल दी मुझमें
बीमार अच्छा हो गया चारागर देख कर

तमाशा

यूँ ना करो बार बार तमाशा
महँगा पड़ेगा मेरे यार तमाशा

कुछ ऐसे भी मिले हैं जिनकी
आदतों में है शुमार तमाशा

कहते फिरते थे सुधर गए हैं
फिर ये क्या हज़ार तमाशा

फ़ितरत आपकी क्या कहिए
जब देखो सरकार तमाशा

हमने भी जवानी देखी है बेटा
किए हमने भी दो-चार तमाशा

बहनों के नाम – रक्षाबंधन २०१९

मेरी बहनों!

मैं एक बार फिर
तुम्हें सुरक्षित रखने का वचन देता हूँ
मगर हर बार की तरह इस बार…
तुम्हारे गिर्द कोई दीवार खड़ी कर के
तुम्हें आवाज़ धीमी रखने की सलाह
और नज़र नीची करने की हिदायत दे कर नहीं

दबी हुई चीख़ मौन नहीं है
कायरता हमेशा बुद्धिमत्ता का प्रतीक नहीं होती
पंछी पिंजरों में सुरक्षित नहीं,
सिर्फ़ क़ैदी होते हैं

इस बार मैं तुम्हें सच्ची सुरक्षा दूँगा
तुम्हारे स्वर को अपनी आवाज़ देने का
तुम्हारे कांधों को संबल देने का
तुम्हारे क़दम में क़दम मिलाने का
तुम्हारे साथ खड़ा रहने का वचन दूँगा।

बढ़ो मेरी बहनों,
सलाखों को गिराते हुए
दीवारें ढहाते हुए
नए रास्ते बनाते हुए बढ़ो।

आसमानों को तलाश है तुम्हारी।

चिड़िया

एक छोटी सी चिड़िया ने
मेरी खिड़की के ऊपर
एक प्यारा सा घोंसला बनाया था
आज तेज़ हवा ने वह घोंसला गिरा दिया।

सुबह से चिड़िया एक एक तिनका ला-ला कर
घोंसला वापस बनाने में जुड़ी है,
और मैं अपने पलंग पे लेटा
अपनी टूटी टाँग सहलाता
वक़्त को कोस रहा हूँ।

Dosti

हर मुश्किल में वह हाथ दिया करते हैं
दोस्त साथ साथ मरा जिया करते हैं

आज फिर माँगें

आज फिर वस्ल की चंद मोहलत माँगें
आओ चाँदनी से इसकी इजाज़त माँगें

अपनी आने वाली तारीक ज़िंदगी के लिए
आओ जुगनुओं से थोड़ी जगमगाहट माँगें

वक़्त की हवा का सामना करने के लिए
आओ बुझते चिराग़ों की थरथराहट माँगें

कुछ ज़ख़्म हैं जो शायद भरने से लगे हैं
आओ यार से कोई नई शिकायत माँगें

फिर पाँव के नीचे जमने सी लगी है धूल
आओ तितलियों से ज़रा सी वहशत माँगें

चलो अपने जवाँ इरादों को आज़मायें
आओ एक-दूसरे को छूने की हिम्मत माँगें

दुनिया बदलने को बेताब है हर शख़्स
आओ ख़ुद को बदलने की क़ुव्वत माँगें

अपनों के प्यार को आज़मा के देख लिया
आओ अब दुश्मनों से भी मुहब्बत माँगें

क़ब्र पे खड़ा हो मेरा क़ातिल सर झुकाए
आओ इक ज़िंदगी ऐसी ख़ूबसूरत माँगें

नहीं होता

गर तुमसे भी मेरा दर्द शिफ़ा नहीं होता
चलो माना मैंने मैं अब अच्छा नहीं होता

वक़्त पे वो इक आँसू जो छलक जाता
आँखों में फिर आज ये सहरा नहीं होता

डूब जाती हैं साहिल पे भी किश्तियाँ
हादसा हर बार सर-ए-दरिया नहीं होता

तारीख़ गवाह है शहंशाह हो या फ़क़ीर
वक़्त किसी का भी अपना नहीं होता

चार दिन जो तुम बिताते ईमाँ के साथ
वक़्त-ए-रूखसत ये तमाशा नहीं होता

ज़िंदगी की दौड़ में गिरना तो लाज़मी है
हारते हैं जिन्हे उठने का हौसला नहीं होता