दुख

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दिन बदलेंगे

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इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

अभी अभी नया साल था मनाया हमने
नए संकल्पों को था अपनाया हमने
थे पक्के इरादे मगर मसरूफ़ थे इतने
अभी तो अमल को दिन मिले भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

बाग में गुलमोहर अभी बिछे भी नहीं
गर्मियों के दिन जैसे ढले भी नहीं
लेके दोनों हाथों में गुलाल हमने
गाल उनके प्यार से रंगे भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

है बारिश का मौसम बहाल अब तक
सजन बिन है जीना मुहाल अब तक
सामने से वो गुज़रे बातें भी की मगर
हम बेसाख्ता गले से लगे भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

नमी है जो घर में, नमी आंखों में भी
है तुम्हारी कमी सांसों में, बांहों में भी
ख़्वाब थे हसीं क्योंकि उनमें थे तुम
सो हम उस नींद से जगे भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे जा रहा दिसंबर?

क्यूँ

दिन क्यूँ होता है?
चिड़िया अपने बच्चों के लिए
दाना ढूंढ सके।

रात क्यूँ होती है?
दिन भर का थका हारा सूरज
थोड़ी देर सो सके।

गर्मी क्यूँ आती है?
गेहूं की बालियां अपना गीत
किसानों को सुना सकें।

बारिश क्यूँ होती है?
धरती के सूखे लबों पर
हरी लिपस्टिक लग सके।

सर्दी क्यूँ आती है?
मेरे तुम्हारे जलते मन को
बुझाने के लिए।

आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं

पुरानी यादों से महफ़िल सजाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं
आज फिर किसी को याद आते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं

हद्द-ए-दर्द-ए-जाँ से गुज़र जाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं
दिया नहीं, उसकी तस्वीर जलाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं

जश्न अपनी बर्बादी का मनाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं
पोंछ आंसुओं को, मुस्कुराते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं

जाने वालों को रास्ता दिखाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं
या फिर सपनों में बुला सताते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं

रेखाओं का अपनी मातम मनाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं
छोड़ हौसला, थक के बैठ जाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं

जो सामने हो उसे झुठलाते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं
जो है अदृश्य, उसे सच बताते हैं, आओ शराब पीते हैं, सो जाते हैं