इस क़दर अज़ीज़ थी बेखुदी मुझको
छोड़ कर चली गई ज़िन्दगी मुझको
मेरे काफिले से बिछड़ने का सबब
रास ना आई कभी रवा-रवी मुझको
वादा है मिलेंगे क़यामत के रोज़ हम
कर विदा अब तू हंसी-खुशी मुझको
ढूंढता रहा जिसे मैं उम्र भर हर जगह
मिली अपने अंदर वो रौशनी मुझको
मैं वक़्त का बिगड़ा हुआ शहजादा हूं
करे सजदा सितारे हर घड़ी मुझको
मैंने देखी है सितारों की दुनिया लोगों
अब पुकारती है दो गज़ ज़मीं मुझको
था गुमां मुझे मैंने फतह कर ली दुनिया
हाथ आई मगर सिर्फ मायूसी मुझको
कोई आस, कोई सहारा नहीं बाकी
संभालती है अब तो शायरी मुझको