ये नेज़े निश्तर-ओ-लश्कर बदल भी सकते हैं
वक़्त बदले तो सिकंदर बदल भी सकते हैं
ये हुजूम जो तुम्हारे पीछे पीछे चल रहा है
कल इस भीड़ के तेवर बदल भी सकते हैं
अपनी तक़दीर से हार के बैठने वाले सुन
अपनी लकीरें दिलावर बदल भी सकते हैं
सच्चाई देखने के लिए आँखें चाहिए यारों
नज़र के साथ ये मंज़र बदल भी सकते हैं
ये दुनिया है चार दिन का बसेरा “ओझल”
हम ऊब गए तो ये घर बदल भी सकते हैं