बहुत दिन हुए


मुस्कुराते हंसते थे बहुत दिन हुए
खुद से भी मिलते थे बहुत दिन हुए

अब तो दिन मिलते हैं जैसे खैरात
हम ख्वाब बेचते थे बहुत दिन हुए

लगता है डर अपनी ही परछाईं से
चरागों से जलते थे बहुत दिन हुए

जिसको भी देखो, है रूठा हमसे
हम भी मचलते थे बहुत दिन हुए

अपना पता है अब ख़ामोश नगर
बच्चों से चहकते थे बहुत दिन हुए

सुनसान है मयकदा, हैं सागर खाली
जाम छलकते थे बहुत दिन हुए

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