फिर मटमैला सूरज निकला
फिर धुँधली सी भोर आयी
चिड़ियाँ उड़ी फिर डाल छोड़
फिर आँगन बेला मुरझाई।
बाढ़ का पानी फिर आया
कल्लू की कुटिया फिर डूबी
कौवों ने दाना फिर खाया
खेतों में सरसों कुम्हलाई।
फिर बाट देखते सावन बीता
आया नहीं संदेसा कोई
मन सहरा-सम रीता-रीता
आँगन ना कोई परछाईं।
आस की माला फिर टूटी
ज्योत बुझी फिर दीपक की
मैं क्या रोऊँ किस्मत फूटी
जाने क्यों आँखें भर आयीं।
कौन जाने कब दिन फिरेंगे
क्या जाने कब दूर हो विरह
जाने कब वो हमसे मिलेंगे
कौन द्वार होगी सुनवाई।