आँगन में चुप्पी छाई है
कुछ पंछी बैठे हैं गुमसुम
सूनी आँखों से आकाश को निहारते
गिलहरियां लावारिस घूमती है
पौधे धूप में कुम्हला रहे हैं
यूँ लगता है जैसे
ज़मीन बिखर रही है
सुना है कल रात आंधी में
वो जो आखिरी बरगद था
वो गिर गया।
आँगन में चुप्पी छाई है
कुछ पंछी बैठे हैं गुमसुम
सूनी आँखों से आकाश को निहारते
गिलहरियां लावारिस घूमती है
पौधे धूप में कुम्हला रहे हैं
यूँ लगता है जैसे
ज़मीन बिखर रही है
सुना है कल रात आंधी में
वो जो आखिरी बरगद था
वो गिर गया।