मज़ाहिया शायरी का अटेंप्ट
(जैसा कि कहते हैं, भूल चूक लेनी देनी) 😀
पैर पसारे ही थे, चादर हमारी फट गई
स्पीड थोड़ी सी ली तो गाड़ी पलट गई
जितनी मिली हमने गुज़ारी मयकदे में
जितनी कटी वैसे, बड़ी अच्छी कट गई
यूं तो हमारे वास्ते दुनिया भी कम रही
फिर भी दो कमरों में ज़िंदगी सिमट गई
तुझको छूने की कभी जुर्रत ना की मैंने
क्या सूझा तुझे, तू क्यूं ऐसे लिपट गई
तू याद में था जब तो कितना हसीन था
तू आया ख़्वाब में तो नींद ही उचट गई