चाँद-तारे हमारे रतजगों को जानते हैं

चाँद-तारे हमारे रतजगों को जानते हैं
जुगनू हमारी सुर्ख़ आँखें पहचानते हैं

एक उम्र गुज़ारी है तुम्हारी यादों के सहारे
जैसे सुकून-ए-दिल पे ख़ंजर तानते हैं

सुना है इस दुनिया का कोई और खुदा है
हम हैं नादाँ कि मुहब्बत को खुदा मानते हैं

उकता गए है दिल की अफ़्सुर्दगी से ‘ओझल’
चलो गर्म सहराओं की ख़ाक छानते हैं

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