चला जाऊंगा शोर मचाए बिना
बिन पुकारे तुम्हे जाऊंगा
छोड़ जाऊंगा कुछ अधूरी कविताएं
कुछ किताबें अनपढ़ी
यादों में एक अस्फुट तस्वीर
और आंखों के कोरों से झांकता एक कतरा
चाहे जितना समेटो मुझे
हाथ न आऊंगा मैं
पुकारो जितना भी
वापिस न आऊंगा मैं
जाऊंगा जैसे पंचमी पर जाता है शिशिर
जैसे अमावस पर चांद
जैसे ऑफिस से जाता है कोई देर रात
जैसे रेगिस्तान से जाता है समंदर
जितनी कमी होती है
पानी में आग की
या आग में नेह की
जितनी रिक्तता भरता है चांद
धरती की
या छोड़ जाता है गेंहू खेत में
बस उतनी ही कमी छोड़ के
तुम्हारे जीवन में
चला जाऊंगा मैं