दर्द ही मरासिम का नाम हो शायद
ये तड़प मेरे दिल का बाम हो शायद
इजहार-ए-मुहब्बत को मंज़ूर ख़ामोशी
यही इसका वाजिब अंजाम हो शायद
रात आई मुझे याद इक भूली हुई धुन
मेरे माज़ी का खोया कलाम हो शायद
दिल धड़का आज बहुत बरसों बाद
लिया किसी ने तुम्हारा नाम हो शायद
नज़रें बचाके गुज़रे हैं अमीर उससे ऐसे
फ़क़ीर देता खुदा का पैग़ाम हो शायद
गले मिलो ‘ओझल’ यार हो या दुश्मन
कौन जाने ये आख़िरी शाम हो शायद