देख कर

ख़ुद-परस्ती का यह नया मंज़र देख कर
बहुत हैरान हूँ आज अपने अंदर देख कर

वह आँख जिसे पत्थर कहता रहा बरसों
हुई कुछ तो नम दिल-ए-बंजर देख कर

कहा करता था बिन मेरे बिखर जाएगा
अफ़सोस हुआ यूँ तुझे यकसर देख कर

कोई गर अपनी मुफ़लिसी में भी ख़ुश है
हैरान होते हैं उसे कई सिकंदर देख कर

मुझे ख़ौफ़ सिर्फ़ लानत-ए-ना-तवाँ से है
नहीं डरता तुम्हारे नेजे-निश्तर देख कर

आपके तबस्सुम ने जान डाल दी मुझमें
बीमार अच्छा हो गया चारागर देख कर

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Leave a comment

%d bloggers like this: