देख रहे हैं

बुझती हुई आंखों से सहर देख रहे हैं
देखा तो नहीं जाता मगर देख रहे हैं

चेहरा छुपाए तेरी जुल्फों में आज हम
धड़कन पे सांसों का असर देख रहे हैं

उतार के तूफान-ए-समंदर में कश्ती
बहुत गौर से हरेक लहर देख रहे हैं

बैठे हैं इक गिरती हुई दीवार तले हम
कदमों की आरज़ू का सफ़र देख रहे हैं

शाम ढले आज फिर बालकनी में बैठे
बागीचे में वो तन्हा शजर देख रहे हैं

अपनी आंखों को करके तेरे हवाले
दिखाती है जो तेरी नज़र देख रहे हैं


Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Discover more from ओझल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading