नज़रों का छिप-छिप मिलना देख रहे हैं
जज़्बातों का गिरना-संभलना देख रहे हैं
उसकी हक़ीक़त जानते हैं हम फिर भी
चुपचाप उसका चेहरे बदलना देख रहे हैं
आग सी लगी है जंगल में, दूर नदी किनारे
कुछ भेड़िए मासूमों का जलना देख रहे हैं
शहर की तेज़ बारिश में चाय हाथ में लिए
लोगों का सड़कों पे फिसलना देख रहे हैं
ये कैसे लोग हैं जो हवाई जहाज़ में बैठे
भूखे किसानों का यूँ ही मरना देख रहे हैं