दिन के बाद चलते हुए दिन
खुद को जैसे गिनते हुए दिन
जानता हूं कम ही मिलते हैं
मुस्कुराते चहकते हुए दिन
दिन हैं गगरी, दिन ही पानी
दिन दिन में भरते हुए दिन
हर सुबह नए नए आते हैं
रात रात में पलते हुए दिन
मैं गिरूं तो संभालते हैं मुझे
उठ चलने को कहते हुए दिन
ज़िंदगी इक कवायद है कोई
इक कतार में चलते हुए दिन
दुल्हन की तरह इतराते हैं
ईद होली पे सजते हुए दिन
बाद में याद बहुत आते हैं
बचपन के महकते हुए दिन