एक आदत

सच कहो क्या ये एक आदत है
या वाक़ई बड़ी मसरूफ़ियत है

ज़रूर वो उतना ही चाहते हैं हमें
आजकल अजीब सी गफ़लत है

जिसे चाहा बस उसी के हो रहे
बोलो भला ये भी कोई मुहब्बत है

क्या फिर किसी ने कोई सच कहा
आज फिर शहंशाह को दहशत है

कश्तियों को डुबोता जा रहा है
इस दरिया-ए-दिल की वहशत है

 

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