थे मेरे साथ …
एक आस
दूर मंदिर की घंटियों सी
एक प्यास
सराबों को मुँह चिढ़ाती हुई
एक आग
बदन के ज्वालामुखी में
एक दर्द
खला को मात देता हुआ
और अब…
एक याद
ख़्वाबों के उजालों सी
एक ख़ुशबू
रेगिस्तान में फुहारों सी
एक स्पर्श
अक्टूबर की सिहरन सा
एक ही ख़याल
शायद कहीं फिर कभी तुम …