एक नया दस्तूर कुछ ऐसा चलाया जाए
ख़ुद को ज़माने से बेहतर बनाया जाए
तसव्वुर-ए-जानाँ की बेख़ुदी में शायद
मुमकिन है फिर ख़ुद को पाया जाए
निगाहें मिलीं क़ातिल से तो दिल ने कहा
इल्ज़ाम ये भी अपने ही सिर उठाया जाए
किताब-ए-माज़ी के पन्नों में गुम होके
आज कोई गीत पुराना गुनगुनाया जाए
दिल को क्या हुआ है आज सुबह से ये
किसी अनजान डर से घबराया जाए
हसीनों को समझाओ अच्छा नहीं होता
एक आशिक़ को इतना तड़पाया जाए