लो फिर एक शाम घिर आयी है, और मैं हूँ
दिन भर की थकन की कमाई है, और मैं हूँ
ये किसने कहा कि तुम बिन घबराता है जी
हज़ार ग़म हैं, मय है, तन्हाई है, और मैं हूँ
बहुत ढूँढा मगर नज़र ना आया वो चिराग़
एक सियाह रात की खाई है, और मैं हूँ
वहाँ तुम्हें शोहरत की सौ बुलंदियाँ मुबारक
यहाँ एक सुनसान तनहायी है, और मैं हूँ
उजाले उसकी यादों के कुछ तो काम आएँगे
आज फिर बदली सी छायी है, और मैं हूँ
फिर चला आया है तुम्हारी यादों का कारवाँ
जनवरी की सर्द रात है, रज़ाई है और मैं हूँ
किसे मालूम था सच लिखने की सज़ा यूँ होगी
टूटी क़लम, बिखरी रोशनायी है, और मैं हूँ