मतलब है तेरे फ़िराक़ से ना विसाल से
मक़सूद है जी को सिर्फ़ तेरे ख़याल से
सरे-महफ़िल उस शोख़ की बेरुख़ी देखके
दिल में उठते रहे जाने कितने सवाल से
वक़्त जुदाई का चलता ही रहा बेसाख़्ता
हर लम्हा बीता यक़ीं मानो जैसे साल से
यूँ तो हमको तुमसे कोई गिला नहीं जानाँ
जाने क्यूँ फिर भी जी में आते हैं मलाल से
घर-आँगन में हमारे तीरगी फिर ठहरी नहीं
रोशनी ऐसी बिखरी कुछ उसके जमाल से
बादशाहों के नसीब में दौलत कहाँ ‘ओझल’
जो बिखरी फ़क़ीर के दस्त-ए-कमाल से