एक बस हमीं को हौसला ना हुआ
वरना दुनिया में क्या क्या ना हुआ
वक़्त-ए-मर्ग जो मुस्कुरा भी ना सके
ये समझो ज़ीस्त का हक़ अदा ना हुआ
हमारे नाम को रोती है दुनिया
चलो शुक्र है क़त्ल ये जाया ना हुआ
दिखाई देती है दूर तलक तारीक़ी
शायद चांदनी को रास्ता ना हुआ
आज का दिन भी कुछ मायूस बीता
आज भी वोह हमसे आशना ना हुआ
हमराह होने से कोई हमसफ़र नहीं होता
हुजूम था साथ प’ क़ाफ़िला ना हुआ