सुन के सदा ज़रा ठहर हम हैं
देखता जा एक नजर हम हैं
जब से तूने छोड़ा बीच राह हमें
मत पूछ ऐ यार किधर हम हैं
ये ज़ीस्त की अजब साजिश है
तू उदास उधर, बेचैन इधर हम हैं
नहीं भाती कोई दास्तान-ए-मुहब्बत
बाशिंद-ए-ज़िन्दाने-हिजर हम हैं
मंजिलें पुकारती है अब भी हमें
राह भटके हुए मुसाफ़िर हम हैं
हुई बे-चेहरा दस्तक भी हमारी
कहना पड़ता है ये दर पर हम हैं
कोई और होता कब का मर जाता
लाश कांधे पे उठाए मगर हम हैं