हम हैं

सुन के सदा ज़रा ठहर हम हैं
देखता जा एक नजर हम हैं

जब से तूने छोड़ा बीच राह हमें
मत पूछ ऐ यार किधर हम हैं

ये ज़ीस्त की अजब साजिश है
तू उदास उधर, बेचैन इधर हम हैं

नहीं भाती कोई दास्तान-ए-मुहब्बत
बाशिंद-ए-ज़िन्दाने-हिजर हम हैं

मंजिलें पुकारती है अब भी हमें
राह भटके हुए मुसाफ़िर हम हैं

हुई बे-चेहरा दस्तक भी हमारी
कहना पड़ता है ये दर पर हम हैं

कोई और होता कब का मर जाता
लाश कांधे पे उठाए मगर हम हैं

 

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Leave a comment

%d bloggers like this: