इक ख़ामोशी हर रिश्ते के दरमियान हो जैसे
दिल-ए-नादाँ इस बात से हैरान हो जैसे
हर जश्न के मौक़े पे जाने क्यूँ महसूस हुआ
तेरी सुर्ख़ आँखे बड़ी बेईमान हो जैसे
तुम्हारे दिए ज़ख़्म सर-आँखों पे लिए मैंने
मेरे मंज़िल-ए-इश्क़ का आस्तान हो जैसे
तेरी बेरुख़ी भी कलेजे से लगायी हमेशा
निहा इसमें इश्क़ का इमकान हो जैसे
मेरी ज़िंदगी क़ाबिल-ए-बर्दाश्त बनाती
तुम्हारी आँखों में दबी मुस्कान हो जैसे
पहली मुलाक़ात में ऐसे गले मिलना उसका
हमारी सदियों पुरानी पहचान हो जैसे
महफ़िल में नज़र मिलते ही वो क़तरा से गए
‘ओझल’ की रुस्वाइयों से पशेमान हो जैसे
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आस्तान = a threshold – of palace, mausoleum etc.
इमकान = possibilities
रुसवाइयों = humiliations
पशेमान = embarrassed/ penitent