चिराग़ की मानिंद जल गया मैं
पल भर में ये जहाँ बदल गया मैं
धुआँ चिता का फैला चार-सू
कबा-ए-जिस्म से निकल गया मैं
हसरतें कुछ यूँ बढ़ीं कि कल
ख़ुद से ख़ुद के लिए मचल गया मैं
अच्छा हुआ तुमने फेर ली नज़र
ज़रा सी ठोकर से संभल गया मैं
यूँ मुझे कौन मना सका ‘ओझल’
दिल रखने को उसके बहल गया मैं