तेरे सच्चे झूठे वादों पे जिए जा रहे हैं
तू ज़हर है जिंदगी, हम पिए जा रहे हैं
तुम्हें अपने आगे दिखता नहीं कोई
हम इक जहाॅं कांधे पे लिए जा रहे हैं
हाकिम-ए-शहर को है डर सच्चाई से
सारे आलिम लब अपने सिए जा रहे हैं
यूं तो हाथ उठाने की भी नहीं क़ुव्वत
जीना है जरूरी, सो हम जिए जा रहे हैं
अपना साया भी आता नहीं नज़र हमें
सारी दुनिया को रौशन किए जा रहे हैं
आजा कि शाम से फिर तेरे इंतज़ार में
नीम-कश बादा-ए-ग़म पिए जा रहे है