कैसे

दरिया किनारे पे ही ठहर गया कैसे
बाढ़ का पानी सुबह उतर गया कैसे

आंखों की कोशिश-ए-ज़ब्त के बावजूद
एक आंसू पलक से मफ़र गया कैसे

साथ चलना था हमें तो मील-ओ-मील
इक कांटे से हौसला मर गया कैसे

जिसके बिन जी लगता नहीं था कहीं
जी आज उससे ही भर गया कैसे

पल भर की मुलाक़ात ताउम्र रही याद
मुझे छू के कोई यूं गुज़र गया कैसे

जिसे कल तलक न था खौफ-ए-खुदा
वो आज एक ज़र्रे से डर गया कैसे

रात क्या नशा तारी था यारों मुझपे
ना पूछो कि मैं अपने घर गया कैसे

एक आंसू ही था, कोई फौलाद नहीं
दिल-ए-सय्याद फिर बिखर गया कैसे

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