ज़माने को खफा भी तो कर सकते थे तुम
मुझे अपना जहाँ भी तो कर सकते थे तुम
क्या हुआ जो तुम्हारा सफर नाकाम रहा
एक नई इब्तिदा भी तो कर सकते थे तुम
पहली कोशिश तुम्हारी बेसूद ठहरी तो क्या
जो किया दुबारा भी तो कर सकते थे तुम
मेरे जाने से गर इतना ही गुरेज़ था तुम्हें
मुझे इक इशारा भी तो कर सकते थे तुम
अपने ही दर्द को संभाले बैठे रहे बरसों
और को अच्छा भी तो कर सकते थे तुम