हमें अब की बार भी जलते पत्थरों से गुज़रना था
तक़ाज़ा था मुहब्बत का, सो तक़ाज़ा पूरा करना था
तुम्हें पता था तुम्हारी ख़ामोशी भी आग लगाएगी
ये इक इल्ज़ाम थी, सो इल्ज़ाम हमारे सर करना था
मैं पागल था जो इन हालात पे झुंझलाता रहा
और सब चुप थे, सो मुझे भी समझौता करना था
अपनी हक़-परस्ती का मोल चुकाने की ख़ातिर हमें
सूली चढ़ना था कई बार, सफ़र मक़तल का करना था
मेरे नसीब में तेरा प्यार, तेरी दोस्ती नहीं ना सही ‘ओझल’
मेरी क़िस्मत थी, मुझे इश्क़ एक तुझी से करना था