सदा ख़ामोशियों की, बोलो सुनता कौन है
जो ग़ज़लें मैं लिखता हूँ, जाने पढ़ता कौन है
सेहरा में सराबों को देख मैं ये सोच रहा हूँ
मेरी आँखों में भला नदियों सा बहता कौन है
मुझे धोखा हुआ था, हाँ! धोखा ही हुआ होगा
दिल की बातें आजकल दूजे से कहता कौन है
बड़े मकानों की हक़ीक़त तुमको बतलाता हूँ
सब अलग कमरों में जीते, घर में रहता कौन है
बाद-ए-सबा की फ़ितरत का नहीं क़ाइल ‘ओझल’
यूँ बेवजह ख़ुशबू सबको बाँटते फिरता कौन है