उससे मिलना तो कहना उसे
अब मैं ज़िम्मेदारी से जीना सीख गया हूँ
ऑफ़िस में लोग ख़ुश रहने लगे हैं
बात बात पे चिड़चिड़ाता नहीं हूँ अब
मुहल्ले के बच्चों की बॉल गर आँगन में आ गिरे
वापस कर देता हूँ, चिल्लाता नहीं हूँ अब।
उससे मिलना तो कहना उसे
पुराने गीत फिर से गुनगुनाने लगा हूँ
थोड़ा मीठा कम खाने लगा हूँ
शाम का खाना ख़ुद पकाने लगा हूँ
कभी कभी मॉर्निंग वॉक पे भी जाने लगा हूँ
अब मैं बड़ा हो गया हूँ।
उससे मिलना तो कहना उसे
अब मैं दिन दिन भर कवितायें नहीं लिखता
बिना किसी बात के हँसता-रोता नहीं हूँ मैं
रात रात भर अब नहीं जागता हूँ
उसका नाम सुनके नहीं चौंकता हूँ मैं
उसके ख़्याल से कोई दर्द नहीं होता मुझे।
उससे मिलना तो कहना उसे
अब मैं उसे भूलने सा लगा हूँ
फिर ज़रा-ज़रा जीने लगा हूँ मैं
उससे मिलना तो ये भी कहना
अब झूठ बहुत बोलने लगा हूँ मैं।