तुम्हारे बाद किसी को चाहा नहीं खुल के
जश्न ए ज़िंदगी फिर मनाया नहीं खुल के
मैं जानता था वो निकलेगा बेवफ़ा सो
मैंने हाल-ए-दिल उसे बताया नहीं खुल के
हुआ है जिसके हुनर का दीवाना ये जहां
एक भी गीत उसने गाया नहीं खुल के
लुत्फ तेरी नाराज़गी का खो न जाए कहीं
हमने इस डर से तुझे मनाया नहीं खुल के
बताएंगे किस किस को ये राज़ भला हम
तूने हमको गले से लगाया नहीं खुल के
हो सके तो कोई ग़ज़ल सुनाते जाओ इसे
‘ओझल’ इक उम्र से मुस्कुराया नहीं खुल के