क्या बताऊँ तुम्हें किस क़दर तनहा हूँ

क्या बताऊँ तुम्हें किस क़दर तनहा हूँ
धूल का एक झोंका हूँ ज़मीं से जुदा हूँ
 
दिल-ए-सोगवार की मजबूरियाँ ना पूछ
एक दरिया था जो सुखाए बैठा हूँ
 
प्यार में दुनिया को भुलाना है बहुत आसाँ
मैं तो तुम्हारी याद भी भुलाये बैठा हूँ
 
कभी था इश्क़ इन रानाइयों से मुझे भी लेकिन
अब तो हर हसीं मंज़र से उकता गया हूँ
 
मेरे बदन की कबा में मुझे ढूँढता है क्यूँ
मैं तो कब का यहाँ से जा चुका हूँ

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