कुछ ऐसे अपनी तक़दीर निखार लेता हूँ
इश्क़ से चंद नाकामियाँ उधार लेता हूँ
तुम्हारी यादों के जलते हुए जुगनुओं से
अपनी तारीक सी रातें सँवार लेता हूँ
तुम्हें पाने की ख़्वाहिश नहीं रही बाक़ी
हाँ! ख़्वाब में चुपके चुपके निहार लेता हूँ
इस उजड़े हुए दयार में ख़ुशबू के लिए
चन्द सूखी हुई कलियाँ बुहार लेता हूँ
तुम्हारी ज़ुल्मतें मुझे क्या डराएँगीं ‘ओझल’
मैं वक़्त-ए-मुसीबत माँ को पुकार लेता हूँ