क्या पूछते हो दिन भर क्या करते हैं
अपने ख्वाबों का हम सौदा करते हैं
जो होना है वो तो खैर होकर ही रहेगा
पागल हैं जो सिर अपना धुना करते हैं
अपने हाथों लिखते हैं किस्मत अपनी
फिर उसी किस्मत को कोसा करते हैं
तुमसे लड़ के जाते हैं दफ़्तर जिस रोज़
दिन भर वहां लोगों से झगड़ा करते हैं
ये मील के पत्थर तुमको कहां पहुंचाएंगे
ये तो बैठ किनारे राह ही तका करते हैं
अपनी मंज़िल पाने की खातिर कुछ लोग
रिश्तों औ’ उसूलों से समझौता करते हैं
मौत से दहशत होती है लोगों को जब
फिर क्यूं अपनी ज़िन्दगी ज़ाया करते हैं
जाते हैं काम पे नहा धो कर हम यारों
और वहां पे अपना मुंह काला करते हैं