क्या

गले लगाने की मांगते हो इजाज़त क्या
इतना डरते हो तो करोगे मुहब्बत क्या

जो जा चूका है तकते हो उसकी राह क्यूँ
ऐसे एकतरफ़ा होती है उल्फ़त क्या

अभी गुज़ारे हैं हमने साथ कोई चार बरस
इसे रिश्ते का नाम देने की है उजलत क्या

हमें पता है हमारी शर्ट पे हैं दाग बहुत
तुम्हे है इन पे हंसने की अब ज़रुरत क्या

मिले आज जो बरसों में तो लगते हो गले
सुना है कहते थे हमारी कोई निस्बत क्या

ये जो खुद को मिटाने पे तुले हो ‘ओझल’
है तुमको ज़िन्दगी से भला शिकायत क्या

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