क्यूँ नहीं देते

जाते जाते चिराग़ बुझा क्यूँ नहीं देते
सारे हसीं ख़्वाब मिटा क्यूँ नहीं देते

रोशनी की तुमको गर इतनी हवस है
मेरा आशियाँ ही जला क्यूँ नहीं देते

क्या यक़ीनन तुम्हें बोसा नहीं पसंद?
गर इतना उज्र है तो लौटा क्यूँ नहीं देते

गर ये तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं
खत मेरे दरिया में बहा क्यूँ नहीं देते

दूर खड़े करते हो आँखों ही से इशारे
मुझे छू के मेरे होश उड़ा क्यूँ नहीं देते

अपने होंठों से छू के मेरे जाम को तुम
इक नई अफ़वाह उड़ा क्यूँ नहीं देते

 

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