मर जाते हैं रोटियां कमाते हुए लोग
लाश अपनी कांधे पे उठाते हुए लोग
थके थके जाते हैं हर सुबह काम पर
जैसे हों मक़्तल को जाते हुए लोग
लाते शिकन माथे पे, ना डर आंखों में
एक दूसरे का दिल दुखाते हुए लोग
गुनाह अपने भुला के, मांगते हैं नेमत
सजदे में सिर अपना झुकाते हुए लोग
मुस्कान है चेहरे पे, दिल में कसक इनके
रोती हुई आंखों से मुस्कुराते हुए लोग
सच कहूं तो मुझको लगते हैं हसीं बहुत
अपनी गलतियों को निभाते हुए लोग
खुद को फरेब देते हैं और जानते नहीं
अपने दिलों की बात छुपाते हुए लोग
कैसी चली है अबके हवा मेरे शहर में
मिलते हैं अपनों से घबराते हुए लोग
सच कहना क्या तुमने कभी देखे हैं
अहद की खातिर जां गंवाते हुए लोग