गर रुक गया तो दोबारा चल नहीं पाऊंगा मैं
आज रो पड़ा तो मुस्कुराना भूल जाऊंगा मैं
मैंने अपनी बैसाखियां जाने कब की फेंक दीं
अब खुद गिरूंगा, उठूंगा, लड़खड़ाऊंगा मैं
हां थोड़ी सी कमी तो होगी ज़िन्दगी में मेरी
एक तेरे ना होने से मर तो नहीं जाऊंगा मैं
कह दे आज मुझसे जो भी है दिल में तेरे
कल से तो किसी और का कहलाऊंगा मैं
तीरगी फैली चार सू, सन्नाटा घेरे है मुझको
देख तेरी जुदाई का कैसा जश्न मनाउंगा मैं
अब तो मैंने ठानी है पानी में आग लगाने की
ख़त तेरे आज दरिया में बहा आऊंगा मैं
आज मेरी कद्र नहीं, किसी की आंखों में मगर
कल जब ना रहूंगा, याद बहुत आऊंगा मैं