(Edited based on recos by Faiz Jung)
सब जहां जाते हैं ठहर, मैं नहीं जाता
कुछ न आता हो नज़र, मैं नहीं जाता
गौर से सुनता हूँ जब भी सदा दिल की
मुझको पुकारता है घर, मैं नहीं जाता
मुझे बुलाता है मेरा माज़ी जाने कब से
शाम हो या हो सहर, मैं नहीं जाता
महफ़िल में करेंगे लोग चर्चा उसका ही
छाया वो हर ज़हन पर, मैं नहीं जाता
कभी उस गली में आना जाना था मेरा
आज मुझे लगता है डर, मैं नहीं जाता
ओझल मेरी खामोशी देती है पता उसका
वो मगर रहता जिधर, मैं नहीं जाता